అదయి ౬ శ్లోక ౪౩
Chapter – 6 – Shloka – 43
When a man takes birth in his next life, he attains the wisdom he had achieved from the pious actions he performed in the pious actions of his past life, he tries harder once more to achieve true eternal peace and happiness in God through Yoga.
वहाँ उस पहले शरीर में संग्रह किये हुए बुद्भि संयोग को अर्थात् सम बुद्भि रूप योग के संस्कारों को अनायास ही प्राप्त हो जाता है और हे कुरुनन्दन ! उसके प्रभाव से वह फिर परमात्मा की प्राप्ति रूप सिद्भि के लिये पहले से भी बढ़ कर प्रयत्न करता है ।। ४३ ।।
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